परिणाम के निहितार्थ

आम आदमी पार्टी की ऐतिहासिक जीत ने चुनाव विश्लेषकों, राजनीति शास्‍त्रियों और सार्वजनिक स्थलों पर अपनी पैनी नज़र व लम्बे अनुभव को प्रदर्शित करने वाले असंख्य राजनीतिक पण्डितों के समक्ष एक बड़ा प्रश्न चिह्न खड़ा कर दिया है।ऐसा भी होगा इसका इल्म किसी को नहीं था। ' आप ' के पक्ष में ऐसी कोई आँधी भी दृष्टिगोचर नहीं हो रही थी।कुछ लोग तो उनकी             ' नौटंकी ' के विरुद्ध मुखर हो रहे थे।
   भाजपा और संघ के शीर्ष नेतृत्व ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। केन्द्र में पूर्ण बहुमत प्राप्त करने के बाद चार राज्यों में प्राप्त होने वाले विजय ने मद की मात्रा बढ़ा दी और प्रयोगधर्मिता सर चढ़ कर बोलने लगी। जमीन से जुड़े कार्यकर्ताओं और दशकों से पार्टी  के चेहरे रहे स्थानीय नेताओं को नज़रअंदाज़ कर सीईओ  की तरह सरकार चलाने हेतु किरण बेदी को सामने लाने का 'मास्टर स्ट्रोक' आत्मघाती साबित हुआ। चाल ,चरित्र और चेहरा की बात करने वाली 'पार्टी विथ ए डिफरेंस ' ने चेहरा प्रत्यारोपित करने की संस्कृति शायद अपनी धुर विरोधी पार्टी से आयात किया होगा। और मेरी मानें तो शायद इसी कदम ने सारे समीकरणों को ध्वस्त कर दिया। जब आप निष्ठा और प्रतिबद्धता को प्रताड़ित करने की कोशिश करते हैं तो आपके अपने लोग उदासीन और निष्क्रिय हो जाते हैं , संस्था से उनका जुड़ाव या सम्बद्धताबोध शनैः -शनैः कम हो जाता है।  
   कांग्रेसी नेतृत्त्व , बेमन से ही सही ,सत्ता में वापसी की घोषणा करती रही और चूँकि वह अपने प्रदर्शन और परिणामों को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थी इसलिए उसने बड़े-बड़े , थोथे व अवास्तविक वायदों से भी कोई परहेज़ नहीं किया। 
रोज कमाकर रोज खाने वाली दिल्ली की बहुसंख्यक जनता ने धन , वैभव , शक्ति, अहंकार और नकारात्मकता की ' खास ' शैली को नकार कर सरलता, बेचारगी और अपनत्व दिखाने वाली ' आम ' शैली को अंगीकार किया है तो राष्ट्रीय राजनीति के लिए भी इसके गूढ़ अर्थ हमें ढूँढ निकालने होंगे। लोकतंत्र में लोक की महत्ता को पुनर्स्थापित करने की चुनौती सबसे बड़ी है।  
   ऐसा क्या हुआ कि  बवाना से बदरपुर और नजफ़गढ़ से शाहदरा तक के मतदाताओं ने एक दूसरे के दिल की आवाज़  सुन ली  और चहुँदिश एक ही पैटर्न में वोट डले ? मतदान प्रारम्भ होने से एक घण्टे पूर्व ही अधिकांश केन्द्रों पर लगी लम्बी कतारें किस बेचैनी, आतुरता और हलचल को इंगित कर रही थीं ? छले जाने और ठगे जाने की बारम्बारता ने ही शायद इन निरीहों -निहत्थों में ऐसी आक्रामकता दे दी थी कि इन्होंने इतिहास रच डाला !
कहते हैं कि ईश्वर जब जिम्मेवारी देते हैं तो कन्धों की मज़बूती देखते हैं। अरविन्द केजरीवाल और उनके साथियों के ऊपर बहुत बड़ा दायित्व आन पड़ा है।  अपने पाँच वर्ष के कार्यकाल में अगर उन्होंने बिजली -पानी -स्वच्छता जैसे बुनियादी मुद्दों पर लोगों को राहत दी और निजी स्कूलों ,निजी अस्पतालों , नगर निगम व पुलिस की अवैध उगाही पर अंकुश लगा दिया तो न केवल उनका नाम स्वर्णाक्षरों  में लिखा जायेगा बल्कि उनके समक्ष उनके प्रतिद्वंद्वियों का टिकना भी मुश्किल हो जाएगा। 

                                                                                                                                   ~  नीरज पाठक  


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