गन्तव्य

शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं। एक अनुशासित छात्र हूँ इसलिए शिक्षकों की महत्ता को समझता हूँ। छात्रावस्था को पार करने के बाद भी सीखने की ललक बरकरार है और मैं यह दृढ़तापूर्वक मानता हूँ कि जिज्ञासु होना जीवन्तता की निशानी है। यानि हमें अंतिम सांस तक लर्निंग मोड में रहना चाहिये। एक छोटे कस्बाई शहर के सरकारी विद्यालय-महाविद्यालय की अपनी यात्रा में मैंने कई ऐसे शिक्षकों को देखा-महसूसा है जो अपनी व्यक्तिगत परेशानियों-त्रासदियों को पूरी तरह नज़र अन्दाज कर छात्रों को गढ़ने के अपने कर्म-पथ पर अविचल चलते रहे। अल्पवेतनभोगी उन महामानवों ने कर्तव्यपरायणता और निष्ठा के पाठ पोथियों से नहीं वरण अपने आचरण से पढ़ाए..........इस जन्म में उस ऋण से उऋण होना मेरे लिए मुश्किल होगा शायद!
 कालांतर में महानगर का प्रवासी होना पड़ा और मित्रों-सहकर्मियों-वरिष्ठ अधिकारियों-अधीनस्थों से सीखने के कई-कई मौके मिले, मिलते ही जा रहे हैं। मैं रोज अपने को समृद्ध होता पाता हूँ। जीवन की प्रतिकूलताएं भी एक अक्खर मिज़ाज शिक्षक की तरह आपको बहुत कुछ सिखला जाती हैं। ईश्वर की कुछ ऐसी रचना होती है कि वो आपको एकदम से घुटने टेकने पर मजबूर कर देते हैं। प्रार्थना की स्थिति में ला देते हैं आपको। विनीत और विनम्र बनाने का उनका यह प्रयोग हर व्यक्ति पर सफल नहीं हो पाता परन्तु अधिकांश व्यक्ति निश्चित तौर पर इस प्रक्रिया से परिमार्जित हो जाते हैं। व्यक्ति को समर्थ, सबल और परिपक्व बनाने में परिवार,समाज और परिस्थितियों का बहुत बड़ा योगदान होता है। मैं अपने को बहुत ही सौभाग्यशाली मानता हूँ कि माता-पिता और अग्रजों  से ऐसे मूल्य मिले जो संतुलित जीवन जीने और संवेदनशील जीवन-दृष्टि के लिये अनिवार्य है। इस मशाल को अगली पीढी तक हस्तान्तरित करने का कार्य बहुत चुनौती भरा है। और हम  में  से कई सारे लोग इस मुद्दे पर असहाय नज़र आते हैं। चकाचौंध मचाने वाली बहुत सारी चीजें अचानक हमारी जिन्दगी में पैर पसारने लगीं और हम उनके औचित्य को समझे बिना अंधानुकरण  करने लग गए। आधुनिकता और स्वेच्छाचारिता के बीच की महीन परत को हमने अनायास ही मिट जाने दिया है। और इस दिशा में हम ज्यों-ज्यों आगे बढ़ते गए , हमने शिक्षा के बाजारीकरण हेतु अपनी खिड़कियों-दरवाजों को खोल दिया। विद्या-मंदिरों को शॉपिंग मॉल बना डाला।ऐसी व्यवस्था को जन्म दे दिया जिसमें शिशु  के गर्भस्थ रहते ही विद्यालय-प्रवेश की चिन्ता, योजना और दौड़-भाग होने वाले माता-पिता की आँखों की नींद छीन ले। आईए , शिक्षक दिवस के इस पुण्य अवसर पर थोड़ा सा आत्म-चिन्तन कर लें ---------आखिर पहुँचना कहाँ है हमें?
                                                                                   ~ नीरज पाठक

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