स्वतंत्रता दिवस
प्रधानमंत्री के भाषण ने नई ऊर्जा और स्फूर्ति का संचार किया। ऐसा लगा मानो कोई मेरी भावना और वेदना को शब्द दे रहा हो। प्रजा की दिक्कतों को महसूस करना और उनके निवारण की चिंता करना प्रभावशाली नेतृत्व का परिचायक है। संवाद जीवंत हो तो उसकी सार्थकता बनी रहती है और अच्छे परिणाम भी आते हैं। परंपरा के निर्वाह के लिये बोझिल उद्बोधनों को सुनने की बाध्यता समाप्त हो चली, एक शुभ संकेत है। प्रबंधन के शीर्ष पर बैठा व्यक्ति जब बदलाव लाने की इच्छा-शक्ति दिखाता है तो उसका प्रभाव संस्था के निचले पायदानों तक स्वत:दिखने लगता है। हम सभी जहाँ कहीं जिस रूप में हों, अपनी-अपनी भूमिकाओं का निर्वाह पूरी ईमानदारी व निष्ठा से करें तो भारतमाता का गौरव अक्षुण्ण रहेगा। जय हिंद ! जय भारत !!
Comments
Post a Comment