छुट्टी मनाने पटना आया। सरकारी और निजी हस्पतालों से दो-चार होने का मौका मिला।सुशासन और अच्छे दिनों की छाप राजधानी पटना मे नहीं दिख रही। हर तरफ अराजकता और अव्यवस्था फैली है। मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव! अधिकारों और कर्तव्यों पर लम्बे व्याख्यान देने वाले लोग भी शायद यहाँ आकर परिस्थितियों को स्वीकार कर लेना ही श्रेयस्कर समझते हैं। निजी डॉक्टर और नर्सिंग होम इंडिया के लोगों को लूटने में लगे हैं और सरकारी संस्थान भारत के लोगों को असमय ही काल का ग्रास बनाने को आतुर हैं। विवश जनता सब कुछ भोगने को अभिशप्त है। आरोग्य के क्षेत्र में अमानवीयता का यह रौद्र रूप हमें शायद एथियोपिया और युगांडा के समकक्ष ला खड़ा करता है।
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