भारतवर्ष ने मोदीजी के प्रगतिकामी नेतृत्व के पक्ष में स्पष्ट जनादेश दे दिया है।  सफलता से बढ़कर और कोई प्रतिशोध नहीं 

होता। अपशब्दों,गाली-गलौज और अहंकार की राजनीति करनेवालों ने इस व्यक्ति को रोकने की खातिर अनैतिकता के 

सारे कीर्तिमान तोड़ डाले। इन लोगों ने पूरी ताकत लगा दी एक कुत्सित झूठ को सच साबित करने में परन्तु जनता ने इन्हें 

दण्डित कर दिया है। आशा है कि आनेवाले पाँच वर्ष बिजली,पानी,सड़क,घूसखोरी,बेरोजगारी,बीमारी,गरीबी,जातिवाद और

 साम्प्रदायिकता से त्रस्त जनता की जिंदगी में अच्छे दिन अवश्य लायेंगे। साथ ही यह कहना भी अनुपयुक्त नहीं होगा कि 

मामूली सफलता की वजह से घमंड को सर चढ़ाने वाले सावन के अंधे बेशक हर जगह हरियाली देख लें, परन्तु कालक्रम में 

उन्हें मुंह की खानी ही पड़ती है। समय की त्रासदी यह है कि जब हम विश्लेषण करने बैठते हैं तो वस्तुनिष्ठ होने की बज़ाय विषयनिष्ठ हो जाते हैं। ऐसे में 4 दिसम्बर 13 का परिपक्व मतदाता 10 अप्रैल 14 को अचानक घरानों और मीडिया समूहों के दुष्प्रचार में बहकता हुआ दिख जाता है। मानव का स्वभाव है कि वह अपने दुराग्रहों और पूर्वाग्रहों से मुक्त होना ही नहीं चाहता। अब जबकि एक नया सवेरा आ चुका है और दीवाल पर लिखी सारी इबारतें स्पष्ट हो चुकी हैं, ऐसे में हम पढ़े लिखे , "अवरिष्ठ नागरिकों" का यह पुनीत कर्तव्य बनता है कि नयी सरकार को उसके कार्यों, उसकी कार्यशैली और कार्य के परिणामों के आधार पर परखें। अपनी सोच-प्रक्रिया में थोड़ा परिवर्तन लाना लाज़िमी होगा! नागरिक की बज़ाय उपभोक्ता की तरह सोचें----सर्वश्रेष्ठ उत्पाद हमारा अधिकार है, सुशासन हमारा अधिकार है। एक ब्रांड अगर हमारी उम्मीदों पर ख़रा नहीं उतरता तो उसे बदलने में हम जरा भी नहीं हिचकते परंतु अकर्मण्य प्रतिनिधियों और सरकारों को बदलने का विकल्प जब हमारे पास आता है तो हम जाति, धर्म, भाषा,क्षेत्र और तात्कालिक स्वार्थों में उलझ कर रह जाते हैं। हम अपनी अपेक्षाएं परिभाषित नहीं करते। प्रतिनिधि हमारे सेवक हैं, उनसे कितना और कैसा काम लेना है यह हम जैसे विपन्न और अशक्त नागरिकों को ही सुनिश्चित करना होगा। जागो ग्राहक जागो!    
                        ~   नीरज पाठक                   

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