संवेदना

नेताजी एक विशाल रैली को संबोधित कर रहे थे । भाषण मार्मिक हो चला था । पूरे विश्व में बाल श्रमिकों पर हो रहे अत्याचार का इतना सजीव चित्रण कि महिलाएं तो क्या पुरुष भी अपनी अश्रुधारा नहीं रोक पा रहे थे । नेताजी की संवेदनशीलता और पर-दुःख-कातरता ने सभी का मन मोह लिया । लोगो ने निश्चय कर लिया कि इस विशाल ह्रदय नेता को समर्थन देने से क्षेत्र का कल्याण सुनिश्चित है । चुनाव हुये । नेताजी स्पष्ट बहुमत से जीते । समर्थकों ने एक विजय जुलूस निकाला जिसकी अगुआई नेताजी स्वयं कर रहे थे । यात्रा का अन्तिम पडाव नेताजी का आवास था । फूल मालों से लदे नेताजी ने जैसे ही अपनी बैठक में कदम रखा , एक विचित्र दृश्य देखने को मिला । उनके इम्पोर्टेड दीवान पर दस साल का नौकर खर्राटे ले रहा था । क्रोध से उनके तनबदन में आग लग गयी । उन्होने आव देखा ना ताव , उस पर झपट पडे। उनका ग़ुस्सा तब शांत हुआ जब रजुआ का बदन नीला पड़ गया!

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